Behold

Monday, July 14, 2025

मेरे मन बिच सै जदुराई


मेरे मने बिच सै जदुराई
बार सत्त दस मारि जिन्नी मगध अनीक नठाई।१।
जिन्नी यवनपति रण छडिके मार्या अनल जलाई।
भन्नेया मान बिकट नृपदल दा करि गोमन्त लड़ाई।।२।।‌
सागरे बिच जिन्नी रैवत गढ़ करि द्वारका बसाई।
पढ़ि पतरी हरि श्री विदर्भ ते चेदिपति जो हराई।।३।।
मारिके नरक दारिका सोळा सहस एक सौ छड़ाई।
चुकेया कल्पतरु सुरपति दा दित्ता दर्प गुआई।।४।।
सौग्गी डिंभक हंंस  मगधपति करि छल लेया मराई।
कट्ट गळा सिसुपाल मुकाया धरम दा जग करवाई।।५।।
जिन्नी सौभराज दल कन्ने धूड़ि लेया मिळाई।
लड़ि संकर ते बाणासुर दी बांह सहस्र उड़ाई ।। ६।।
दे पट द्यूत सभा विच जिन्नी कृसना लाज बचाई।
भगतां दे हित दूत जे बणया छड अपणी ठकुराई।। ७।।
देइके जिन्नी गीता डुबदा पारथ लेया बचाई।
सारथी बन समुद्र कुरुवां दा दित्ता पार कराई।।८।।
नीले बद्दळ जेई सुंदर चिन्मय देह बणाई।
कवच किरीट बसन पीळा धरि प्रकट बीर जदुराई।।९।।
कहंदे बेद नेति बहु विध जिदी महिमा ऋषियां गाई।
आदि धरम हित बण जोधा करदा खेलां सै सांई।।१०।।


भावार्थ 

मेरे मन में तो वही यदुराज श्रीकृष्ण है जिसने १७ बार मगध की सेना को मार मारकर भगाया।१।।

जिसने रण छोड़ कर यवनराज को (मुचुकुंद की) अग्नि से जलाकर मार दिया और विशाल राजाओं के दलका, गोमंत का युद्ध लड़कर ,मान भंग कर दिया।। २।।

जिसने समुद्र के बीच में रैवत पर्वत का दुर्ग बनाकर द्वारका पुरी बसाई। चिट्ठी पढ़कर विदर्भ नगर से, शिशुपाल को हराकर रुक्मिणी को हर लिया।।३।।

जिसने नरकासुर को मारकर १६१०० स्त्रियां छुड़ाई। कल्पतरु उठाकर इन्द्र का गर्व गुम कर दिया।। ४।।

हंस और डिंभक के साथ मगधराज जरासंध को छल से मरवा डाला। धर्म (युधिष्ठिर) का यज्ञ करवाके शिशुपाल को गला काट कर समाप्त कर दिया।। ५।।

सौभ नामक विमान के स्वामी शाल्व को सेना सहित धूल में मिला दिया। भगवान शंकर से युद्ध करके बाणासुर की १००० भुजाएं उड़ा दी।।६।।

जिसने द्यूत सभा में वस्त्र देकर द्रौपदी की लाज बचाई। भक्तों के लिए जो अपनी ठकुराई भूलकर दूत भी बन गये।।७।।

जिसने डूबते हुए  अर्जुन को गीताज्ञान देकर  बचाया और 
 सारथी बनकर कौरवों का समुद्र पार करवाया।।८।।

नीले मेघ सी सुंदर चिन्मय देह बनाकर कवच मुकुट पीताम्बर धारण करके वीर यदुराज श्रीकृष्ण प्रकट हुए हैं।। ९।।

वेद जिनके विषय में 'नेति' -यह नहीं है कहते हैं, जिनकी महिमा ऋषियों‌ने अनेक प्रकार से गाई है। हे आदि धर्म के लिए योद्धा बनकर वही ईश्वर लीला कर रहे हैं।। १०।।

English meaning 

In my heart dwells that very Yadu King, Shri Krishna,
Who defeated the army of Magadha seventeen times, driving them away again and again (1)

Who, after leaving the battlefield, destroyed the Yavana king
By leading him into the yogic fire of Muchukunda.
He fought the battle of Gomanta against the mighty coalition of kings
And shattered their pride. (2)

Who built the grand fortress of Dwarka upon Mount Raivat in the middle of the sea,
And after reading a letter, went to Vidarbha, defeated Shishupala, and took away Rukmini (3)

Who killed the demon Narakasura,
And liberated 16,100 women from his captivity.
He lifted the Kalpavriksha (wish-fulfilling tree),
And humbled the pride of Indra, the king of gods. (4)

Who, along with Hansa and Dimbhaka,
Cleverly caused the death of Jarasandha, king of Magadha.
He conducted Yudhishthira's royal sacrifice,
And beheaded Shishupala, ending his tyranny (5)

Who destroyed Shalva, the master of the flying city "Saubha", along with his army.
He fought a battle with Lord Shiva himself,
And chopped off Banasura's thousand arms (6)

Who saved Draupadi's honor in the gambling hall by providing her endless garments,
And for the sake of his devotees, set aside his own godhood and even became a messenger (7)

Who saved drowning Arjuna by giving him Gita
And as a charioteer, helped him cross the ocean of Kauravas (8)

With a divine form as radiant as a dark blue cloud,
Adorned with armor, a crown, and a yellow robe—
The valiant Yadu King, Shri Krishna, appeared in glory. (9)


The Vedas say “Neti, neti”—He is beyond definition.
His greatness has been sung by countless sages in many ways.
He, the Lord of the Universe, plays on this earth
As the eternal warrior of righteousness. (10)

Sunday, July 13, 2025

यदुराई (श्रीकृष्ण स्तुति , कांगड़ी)


मेरे मने बिच सै जदुराई
बार सत्त दस मार मार जिन्हि मगध अनीक नठाई।१।
छड रण यवनपति जिन्हि मार्या पावक जोग जलाई।
भन्नेया मान बिकट नृपदल दा करि गोमन्त लड़ाई।।२।।‌
बिच समुद्र गिरि रैवत गढ़ करि जिन्हि द्वारका बसाई। 
पढ़ि पतरी हरि श्री विदर्भ ते चेदिपति जो हराई।।३।।
मारिके नरक दारिका सोळा सहस एक सौ छड़ाई।
चुकेया कल्पतरु सुरपति दा दित्ता दर्प गुआई।।४।।
सौगी डिंभक हंंस मगधपति करि छल लेया मराई।
कट्ट गळा सिसुपाल मुकाया धरम दा जग करवाई।।५।।
सौभाधिपति दल कन्ने जिन्हि धूड़ी लेया मिळाई।
लड़ि संकर ते बाणासुर दी बांह सहस्र उड़ाई ।। ६।।
दे पट द्यूत सभा विच कृसना दी जिन्हि लाज बचाई।
भगतां दे हित दूत जे बणया छड अपणी ठकुराई।। ७।।
धरम बिमूढ़ सखा अपणे जो गीता जिन्हि सुनाई।
सारथी बन समुद्र कुरुवां दा दित्ता पार कराई।।८।।
नीले बद्दळ जेई सुंदर चिन्मय देह बणाई।
कवच किरीट बसन पीळा धरि प्रकट बीर यदुराई।।९।।
कहंदे बेद नेति बहु विध जिदी महिमा ऋषियां गाई।
आदि धरम हित बण जोधा  लीला करदा सै सांई।।१०।।

भावार्थ 

मेरे मन में तो वही यदुराज श्रीकृष्ण है जिसने १७ बार मगध की सेना को मार मारकर भगाया।१।।

जिसने रण छोड़ कर यवनराज को (मुचुकुंद की)योगाग्नि से जलाकर मार दिया और विशाल राजाओं के दलका, गोमंत का युद्ध लड़कर ,मान भंग कर दिया।। २।।

जिसने समुद्र के बीच में रैवत पर्वत का दुर्ग बनाकर द्वारका पुरी बसाई। चिट्ठी पढ़कर विदर्भ नगर से, शिशुपाल को हराकर रुक्मिणी को हर लिया।।३।।

जिसने नरकासुर को मारकर १६१०० स्त्रियां छुड़ाई। कल्पतरु उठाकर इन्द्र का गर्व गुम कर दिया।। ४।।

हंस और डिंभक के साथ मगधराज जरासंध को छल से मरवा डाला। धर्म (युधिष्ठिर) का यज्ञ करवाके   शिशुपाल को गला काट कर समाप्त कर दिया।। ५।।

सौभ नामक विमान के स्वामी शाल्व को सेना सहित धूल में मिला दिया। भगवान शंकर से युद्ध करके बाणासुर की १००० भुजाएं उड़ा दी।।६।।

जिसने द्यूत सभा में वस्त्र देकर द्रौपदी की लाज बचाई। भक्तों के लिए जो अपनी ठकुराई भूलकर दूत भी बन गये।।७।।

धर्म के विषय में विमूढ़ हुए अपने सखा अर्जुन को जिसने गीता सुनाई और सारथी बनकर कौरवों का समुद्र पार करवाया।।८।।

नीले मेघ सी सुंदर चिन्मय देह बनाकर कवच मुकुट पीताम्बर धारण करके वीर यदुराज श्रीकृष्ण प्रकट हुए हैं।। ९।।

वेद जिनके विषय में 'नेति' -यह नहीं है कहते हैं, जिनकी महिमा ऋषियों‌ने अनेक प्रकार से गाई है। हे आदि धर्म के लिए योद्धा बनकर वही  ईश्वर लीला कर रहे हैं।। १०।।

English meaning 

In my heart dwells that very Yadu King, Shri Krishna,
Who defeated the army of Magadha seventeen times, driving them away again and again (1)

Who, after leaving the battlefield, destroyed the Yavana king
By leading him into the yogic fire of Muchukunda.
He fought the battle of Gomanta against the mighty coalition of kings
And shattered their pride. (2)

Who built the grand fortress of Dwarka upon Mount Raivat in the middle of the sea,
And after reading a letter, went to Vidarbha, defeated Shishupala, and took away Rukmini (3)

Who killed the demon Narakasura,
And liberated 16,100 women from his captivity.
He lifted the Kalpavriksha (wish-fulfilling tree),
And humbled the pride of Indra, the king of gods. (4)

Who, along with Hansa and Dimbhaka,
Cleverly caused the death of Jarasandha, king of Magadha.
He conducted Yudhishthira's royal sacrifice,
And beheaded Shishupala, ending his tyranny (5)

Who destroyed Shalva, the master of the flying city "Saubha", along with his army.
He fought a battle with Lord Shiva himself,
And chopped off Banasura's thousand arms (6)

Who saved Draupadi's honor in the gambling hall by providing her endless garments,
And for the sake of his devotees, set aside his own godhood and even became a messenger (7)

Who recited the Bhagavad Gita to his confused friend Arjuna,
And as a charioteer, helped him cross the ocean of Kauravas (8)

With a divine form as radiant as a dark blue cloud,
Adorned with armor, a crown, and a yellow robe—
The valiant Yadu King, Shri Krishna, appeared in glory. (9)


The Vedas say “Neti, neti”—He is beyond definition.
His greatness has been sung by countless sages in many ways.
He, the Lord of the Universe, plays on this earth
As the eternal warrior of righteousness. (10)














Friday, June 27, 2025

स्यन्दन चढ़े मुरारि


देखो स्यन्दन चढ़े मुरारि
सह भगिनी संकर्षण सुंदर त्रिभुवन मंगलकारी।।१।।

लवण सिंधु तट जन समुद्र युत मधुर प्रेममय वारि।
बढ़े निरख सित दूज जेठ त्रय शर्वरीश सुखकारी।।२।।

अगम गिरा गोतीत निगम शिर वपुष् काठमय धारी।
चले भवन निज त्याग भगत हित त्रिविध ताप भय हारी।।३।।

कंपित क्षमा गगन दिवि मण्डल पूरित जय रव भारी।
जलद अबीर सुमन वर्षा जल लुप्त भानु तिमिरारि।।४।।

भूधर नील विराजित हलधर केशव सह नर नारी।
राम चरण सरसिज रति मांगे तुमसे 'आदि' भिखारी।।५।।



भावार्थ -

 देखो ! तीनों लोकों का मंगल करने वाले सुंदर श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और बलराम के साथ रथ पर चढ़े हैं।।१।।

 खारे समुद्र के तट पर  एक जन समुद्र ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को उदित हुए तीन सुखकारी पूर्ण चंद्रों को देखकर बढ़ रहा है जिसका जल मधुर और प्रेम रूप है।।२।।

(पूर्णिमा के दिन खारे समुद्र में  हलचल होती है पर यहां ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को ही तीन पूर्ण चंद्र उदित हो गये जिनको देखकर मधुर जल युक्त जन समुद्र बढ़ रहा है)

जो वाणी के अविषय हैं , इन्द्रियों के परे हैं, वेदों का शिरोभाग (वेदांत सिद्धांत हैं) वे ही त्रिविध ताप और भय हरने वाले प्रभु काष्ठमय शरीर धारण कर, भक्तों के लिए अपने भवन से निकले हैं।।३।।

भारी जय घोष से भरे हुए पृथ्वी आकाश और देवलोक कंपित हो उठे हैं। अबीर  के बादलों और पुष्पों की   वर्षा में  सूर्य भी लुप्त से हो गये हैं ।।४।।

हे नील गिरि पर विराजमान बलभद्र श्रीकृष्ण और सुभद्रा देवी, ये आदि भिखारी है जो आपसे श्रीराम के चरण कमल में प्रेम की भीख मांगता है।।५।।



English meaning 


Behold! The beautiful Shri Krishna, who brings auspiciousness to all the three worlds, has ascended the chariot along with his sister Subhadra and brother Balarama. (1)


On the shore of the salty ocean, a sea of people surges forward on the second day of the bright fortnight of Jyeshtha, having witnessed the rising of three blissful full moons, whose waters are sweet and made of pure love. (2)

(Note: On full moon days, the salty ocean usually stirs with tides, but here, on just the second day of the bright half of Jyeshtha, three full moons—Krishna, Balarama, and Subhadra—have risen, and the crowd, like a sweet ocean, swells joyfully.)


Those who are beyond speech, beyond the senses, the very essence of the Vedas—the Lord who removes the threefold miseries and all fears—has taken on a wooden form and emerged from His abode for the sake of His devotees. (3)


The Earth, sky, and heavens tremble with the thunderous shouts of victory. In the shower of colored powders and flowers, even the sun appears hidden from view. (4)


O Balabhadra, Shri Krishna, and Devi Subhadra—residing upon the blue mountain—this humble beggar Aadi stands before you, pleading for the alms of love for the lotus feet of Shri Ram. (5)


Saturday, June 21, 2025

पाहि सियावर दूत सुजान

पाहि सियावर दूत सुजान 
राम नाम पर दास त्रास हर संकट विकट मथन हनुमान।।१।।

लवण सिंधु गो पद इव लांघा चले यथा राघव वर बाण।
अगम सिंधु भव किस विधि लांघू मारुत तनय करो तुम त्राण।। २।।

मति बल माता छलि व्याल की योजन शत कृत वदन महान।
क्षण क्षण डसे विषय विषधर लघु मरुं मूढ़ नित कर विषपान ।।३।।

गिरि त्रिकूट वर दुर्ग दहन कर  निशिचर वंश कुमुद कृत म्लान।
शैल तीन गुण देह दुर्ग रत जीव ग्रसा रावण अज्ञान।।४।।

दीन हीन सुग्रीव विभीषण दिया राम भुज बल वरदान।
मुझ सम दीन कौन कपि तुमको पाहि खड़ा कलि दण्ड को तान।।५।।

पिंगल नयन वदन पाटल सम देह धराधर हेम समान‌।
लिये राम रति भेषज सुंदर रुद्र रूप कपि भरो उड़ान।।६।।

Tuesday, June 17, 2025

वाराह स्तुति






जय कनक लोचन शिर विदारक देव सूकर तन लिये।

सह क्षोणी जग विस्तार अज रुचि श्रृंग पर धारण किये।।

जय रुधिर मण्डित तुण्ड दशन कराल वपु मखमय हरे।

खुर खर क्षुरप्र समान घर्घर नाद खल मन भय करे।। १।।


जय शुण्ड इव भुजदण्ड धृत धरणी चराचर गर्भिणी।।

ज्यों मत्त कुंजर दंष्ट्र शोभित सहित पल्लव पद्मिनी।।

कर चक्र दर अंबुज गदा पद नागपति फण पर सजे।

मन सुभग चिन्मय मोद मूलक क्रोड़ विग्रह नित भजे।।२।।


तव रूप अध्वरमय बखानते  सकल वेद  पुराण जो।

मति मन अगोचर पार वाणी भव विभव हित प्राण सो।

मुनि मन मधुप तव रूप सुंदर भूमिधर मम मन बसे।

जिस रूप बोहित चढ़के साधक तरते भव बिन तन कसे।।३।।


बिन गन्ध भान समग्र मति हित मग्न जग पाताल में।

द्युति शब्द गति रस ज्ञान केवल व्यक्त थे उस काल में।।

नभ वात पावक नीर थल मय विश्व ब्रह्मा तब धरे।

आदित्य सूकर घ्राण संभव गन्धालोकित जब करे।। ४।।



भावार्थ -


हिरण्याक्ष के सिर के टुकड़े टुकड़े करने वाले वाराह शरीर धारण किये हुए देव आपकी जय हो, जो अपने श्रृंग (दांत की नोक ) पर धरती के साथ ब्रह्मा की सृष्टि विस्तार विषयक रुचि धारण किये हुए हैं। हे रक्त से लथपथ तुण्ड ( मुख का अग्रभाग ) कराल दांत और यज्ञमय शरीर वाले आपकी जय हो। आपके खुर क्षुरप्र बाण के समान तीक्ष्ण हैं, आपकी घर्घर युक्त ध्वनि दुष्टों के मन में भय उत्पन्न करती है।।१।।


हे हाथी की सूंड के समान भुजाओं वाले !जो चराचर को गर्भ में धारण करने वाली भूमि को धारण किये हुए ऐसे लग रहे जैसे मतवाले गजराज के दांत पर पत्तों के साथ पद्मिनी हो, आपकी जय हो! जिनके हाथ में चक्र शंख कमल और गदा हैं और जिनका चरण शेष नाग के फन पर है ऐसे कल्याण के मूल सुंदर चिन्मय वराह विग्रह को मेरा मन नित्य भजता है।। २।।


आपका जो यज्ञमय रुप है जिसका बखान सब वेद और पुराण करते हैं, वह मन और बुद्धि का अविषय शब्दों के परे रहने वाला रूप संसार की स्थिति के लिए प्राणशक्ति है।‌ मेरे मन में तो वही भगवान भूमिधर का सुंदर रुप बसे जो मुनियों के मन का भ्रमर है, जिस रूप की नाव पर चढ़कर साधक बिना क्लेश ही भव सिंधु को तरते हैं।। ३।।


गन्ध (पृथ्वी तत्व का गुण) के भान के बिना समष्टि बुद्धि (ब्रह्मा) के लिए यह जगत् पाताल में डूबा हुआ ही था। उस समय केवल तेज ,शब्द, गति (वायु) , और रस ही व्यक्त थे। यह पंचतत्व मय जगत् ब्रह्मा तभी धारण करते हैं जब घ्राण से प्रकट (गंध के अधिष्ठाता) वाराह रुपी आदित्य गन्ध तत्व को प्रकाशित करते हैं(पृथ्वी को जल से निकालते हैं) ।।४।।






English meaning 


Victory to You, O Lord, who assumed the form of a boar (Varaha) and tore into pieces the head of the demon Hiranyaksha! You, who bore the Earth on the tip of your tusk, upholding Brahma’s vision of creation and expansion. Victory to You, O Lord, whose snout is drenched in blood, who has terrifying tusks  and body embodies the essence of sacrifice (Yajna). Your hooves are as sharp as razors or arrows, and Your thunderous roar strikes fear into the hearts of the wicked. (1)



Victory to You, O Lord, whose arms are like the trunk of a mighty elephant! You hold the Earth, which nurtures all moving and unmoving beings, as is  a delicate lotus is  resting on the tusk of a frenzied elephant. In Your hands, You hold the discus (chakra), conch (shankha), lotus, and mace (gada), and Your divine feet rest upon the hoods of the serpent Shesha. My mind constantly worships that auspicious, beautiful, and conscious form of Varaha, the very root of all welfare.( 2)



Your form, which is one with the Yajna (sacrifice), is extolled by all the Vedas and Puranas. This form, beyond the grasp of mind, intellect, and speech, is the very life-force that sustains the world. May that beautiful form of the Earth-bearing Lord dwell in my heart—He who is the bee to the hearts of sages, and whose divine form acts like a boat that helps seekers cross the ocean of worldly existence without suffering.(3)


Before the awareness of smell (the attribute of the Prithvi element) arose, the  cosmic intellect (Brahma) perceived this world as submerged in the Nether worlds (Patala). At that time, only light (tejas), sound (shabda), movement (vayu), and fluidity (rasa) were manifest. This universe, composed of the five elements, could only be held by Brahma when Varaha, the divine boar—manifesting from the organ of smell—revealed the element of  gandha and brought forth the Earth from the waters.(4)







Monday, June 16, 2025

रामकरारविन्दाष्टक

रघुपति कर सरसिज मन धार 
इन्द्रनील सम नील सुभग छवि चिन्मय वचन अगम गो पार।।१।।
चक्र केतु यव कमल कुलिश धर तरुण अरुण तल दलन विकार।
मुनि मख पाल दनुज दल घालक सुन्द तिया तारक शर मार।।२।।
हेलया शंकर चाप विखण्डन नृप मद द्रुम हित प्रबल  कुठार।
जनकसुता कर पंकज ग्राहक भृगुपति पुण्य कुमुद तुषार।।३।।
बलसूदन सुत एक नयन कर चुन प्रसून कृत श्री शृंगार।
खर दूषण खल सहस चर्तुदश दमन हरण दण्डक वन भार।।४।।
कपट कुरंग धाम निज दायक गृध्राधिप गति परम उदार।
राज सुकंठ विजय मारुत सुत अभय विभीषण नत एक बार।।५।।
रम्य सिंधु तट पुण्य तीर्थकर पूज उमापति सह संभार।
जलनिधि प्रबल मान जड़ता हर सेतु बांध कृत यश विस्तार ।।६।।
कुंभकर्ण शिर भुजा विदारक मथन निशाचर कटक अपार।
सुर नर धेनु ताप भय वारण दहन सुभट पौलस्त्य कुमार।। ७।।

जो कर कमल धरा रघुनंदन कपि के सिर ऋण विरद विचार।
सो सुंदर कर स्पर्श लीन हर 'आदि' कथा निज देह बिसार ।।८।।


भावार्थ 

हे मन रघुनाथ जी के कर कमल को धारण कर।

 जो इन्द्रनील मणि के समान नीला है, जिसकी सुंदर चिन्मय छवि है ,जो वचनों के लिए अगम और इन्द्रियातीत है।।१।।

जो चक्र ,ध्वज, जौ, कमल, वज्र के चिह्न को धारण करने वाला ,तरुण, लालिमा युक्त तल विकारों को हरने वाला है। जो विश्वामित्र के  यज्ञ की रक्षा करने वाला असुरों को मारने वाला और एक बाण मारकर सुन्द दैत्य की पत्नी (ताड़का) को तारने वाला है।। २।।

खेल से शिव धनुष तोड़ने वाला और राजाओं के मद रुपी पेड़ को काटने के लिए प्रबल कुठार है। सीता का पाणि  ग्रहण करने वाला और परशुराम के पुण्य रूपी कुमुदों के लिए पाला है।।३।।

बल दैत्य को मारने वाले इन्द्र के पुत्र को एक आंख से युक्त करने वाला और जिसने (चित्रकूटमें) पुष्प चुनकर सीता का श्रृंगार किया। जो खर दूषण और १४००० दुष्टों का दमन करके दण्डक वन का भार हरने वाला है।।४।।

जो मारीच को निज धाम (भगवद्धाम) , जटायु को परम उदार गति ( पितृ तर्पण ,मुक्ति), सुग्रीव को राज्य हनुमान जी को विजय और एक बार झुकने वाले विभीषण को अभय देने वाला है।। ५।।

सामग्री सहित उमापति महादेव को पूजकर जिसने सुंदर समुद्र तट को तीर्थ बना दिया। जिसने समुद्र का अहंकार और जड़ता को हर लिया और सेतु बांधकर यश‌का विस्तार किया।। ६।।

जो कुंभकर्ण की भुजाओं और सिर को विदीर्ण करने वाला और अपार राक्षस समूह को मथ डालने वाला है। जो विश्रवाकुमार रावण को जलाने वाला और सुर नर पृथ्वी के भय और क्लेश को दूर करने वाला है।। ७।।


 आदि कहता है जो कर कमल रघुनाथ जी ने हनुमान जी के सिर पर रक्खा अपने स्वभाव और (हनुमान जी के प्रति) अपने ऋण को विचारकर, उस करकमल के स्पर्श में शंकर भगवान् राम कथा और अपनी देह को भूलकर लीन हैं (हे मन उसको धारण कर ) ।।८।।













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