जय पारपार अपार अज भवहार सुंदर नरहरि।
करतार चरित उदार रचित विकार वारण सुरसरि।
तन नील नीरज श्याम अगणित काम कामित वचनपर
धर वसन पीत विशाल भुज वनमाल उर सिर मुकुट वर।
सुर काज तज निज राज सकल समाज हित बहु कृत किये
खल वृंद कानन तार धरणी भार हन निज पद दिये।
मल सदन तमचरी कदन परपद गमन तव कर जलजसे
तिय पतित पावन पाद विदित प्रभाव सुर अचरज ग्रसे।
मदमत्त नृपदल दाप हर वर चाप खण्डन लीलया
मधुपुर वसित जन त्रास सुर मख ह्रासकर वध तव दया
जय सिंधु जित खरकाल मर्कटमार अरि कुल पुर दहन
जय प्रणत जीवन त्राण नृण जन प्राण मायानर गहन।
कहें नेति निगम पुराण अगुण अमान निज चिद्रूप जो
त्रिभुवन कमन घनश्याम तन अविकार अविगत ब्रह्म सो।
gazab jai shri ram
ReplyDeleteअद्भुत अति सुंदर रचना साधुवाद प्रणाम।
ReplyDeleteSundar!
ReplyDeleteAdhbhut Bhrata 🙏
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteÀdbhut rachna
ReplyDeleteÀdbhut rachna
ReplyDeleteAdbhut. Ekadashi ke din padhne ko mila, Dhanya hua! Jai Shri Ram.
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