राम नाम पर दास त्रास हर संकट विकट मथन हनुमान।।१।।
लवण सिंधु गो पद इव लांघा चले यथा राघव वर बाण।
अगम सिंधु भव किस विधि लांघू मारुत तनय करो तुम त्राण।। २।।
मति बल माता छलि व्याल की योजन शत कृत वदन महान।
क्षण क्षण डसे विषय विषधर लघु मरुं मूढ़ नित कर विषपान ।।३।।
गिरि त्रिकूट वर दुर्ग दहन कर निशिचर वंश कुमुद कृत म्लान।
शैल तीन गुण देह दुर्ग रत जीव ग्रसा रावण अज्ञान।।४।।
दीन हीन सुग्रीव विभीषण दिया राम भुज बल वरदान।
मुझ सम दीन कौन कपि तुमको पाहि खड़ा कलि दण्ड को तान।।५।।
पिंगल नयन वदन पाटल सम देह धराधर हेम समान।
लिये राम रति भेषज सुंदर रुद्र रूप कपि भरो उड़ान।।६।।
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