जय पार काल कपाल हार विशाल भुज दस धारिणी।। १।।
जय रम्भ संभव दम्भ घालन आठ दस आयुध करे।
नागारिकन्धारुढ़ रुप अनूप सुर मुनि भय हरे ।।२।।
बरिबण्ड बहु भुज दण्ड खण्डिनी चण्ड मुण्ड विघातिनी।
धूम्राक्ष शोणित बीज सेन समेत शुम्भ विपाटिनी।।३।।
ब्रह्मेन्द्र शर्व कुमार माधव रूप वपु सुर हर्षिणी।
कृत दूत हर खल यूथ बल निज ताप दारुण धर्षिणी।।४।।
घटभूत बाधित शैल वासिनी जयति नन्द कुमारिका।
दाडिमी पुष्प समान द्विज जय वैप्रचित्त विदारिका।।५।।
निरखे सकल दुष्काल हत जन नयन शत धारण किए।
नत पाल शाप कराल मोचन शाक पारण हित दिए।।६।।
जय दुर्ग दर्प कुठार बोहित वेद हित जग पोषिणी।
धृत भीम रूप उदार हिम गिरि भार दितिसुत रोषिणी।।७।।
जय मधुप वपु षट्पाद अरुण अपार मद भय सोषिणी।
दे अभय मात: 'आदि' हित मन राम प्रेम सुपोषिणी।।८।।
भावार्थ
) विष्णु के कान के मल से उत्पन्न मधु कैटभ और ब्रह्मा के मन का भय हरने वाली, कालातीत, कपालों का हार पहननेवाली, १० भुजावाली काली को नमस्कार।
२) रंभ के पुत्र महिषासुर का दंभ उतारने वाले १८आयुध जिस देवि के हाथ में हैं उसकी जय। नागारि- हाथी का शत्रु (सिंह )के कंधे पर चढ़ा ये अनूप रूप देवों और मुनियों का भय हरता है।
३) देवि बड़े बड़े अनेक वीरों की भुजाएं तोड़ने वाली और चण्ड मुण्ड को मारने वाली है। धूम्राक्ष रक्तबीज और सेना समेत शुम्भ को चीरने वाली है।
४) ब्रह्मा, इन्द्र, शिव, कार्तिकेय और विष्णु के रूपों का शरीर (मातृका) धरकर देवताओं को प्रसन्न करने वाली है। शिव को दूत बनाकर (शिवदूती)अपने दु:स्तर तेज से असुरों का बल नष्ट किया।
५) घटभूत - घड़े से जन्मे - अगस्त्य द्वारा बाधित पर्वत (विन्धय पर्वत) पर रहने वाली देवि नन्द गोप की पुत्री हैं। वे ही अनार के पुष्प के समान दांतों वाली वैप्रचित्त दैत्य को मारने वाली रक्तदंतिका है उनकी जय हो।
६)देवि ने सूखे से पीड़ित लोगों को सौ आंखें धारण कर देखा (शताक्षी)। शरणागतों को पालने वाले ,कराल शाप को हरने वाले शाक उनको खाने को दिये (शाकाम्बरी)
७) दुर्गम असुर के दर्प के लिए कुठार और वेदों के लिए कर्णधार दुर्गा देवी सारे जग को प्रसन्न करने वाली है।
वे देवि भीमा होकर हिमाचल के दैत्यों को मारने वाली है।
८) छ: पैरों का भ्रमर (भ्रामरी देवि) बनकर अरुण का मद और भय नष्ट करने वाली देवि आप मेरे मन में राम के प्रति को सुपोषण करने वाली हैं। हे माता मुझे अभय दें।
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