कोदण्डपाणि कृपाल खल दल काल राम रमापति।
रणरङ्ग चण्ड अनंग बहु छवि पार गुण माया मति।।१।।
सिर जटा मुकुट विशाल भुज वन माल उर पट चीर के।
श्रम बिंदु शोभित भाल रुधिर तमाल सम तन वीर के।।२।।
खर शीश त्रय दूषण चतुर्दश सहस सुभट विदारणं।
शरभंग गीध मतंग कुटि तिय ताप त्रिविध निवारणं।।३।।
अजभूत कुंभज कोल मर्कट विपिन जन मन भावनं।
हर हृदय कंज अगाध मधुपं नौमि दण्डक पावनं।।४।।
मद अन्ध बालि कबन्ध वारण वात सुत मग भय हरं।
दस कन्ध नगर प्रचंड दाहक सिंह कपि जग जय करं।।५।।
हरि यूथ अगम अपार हित वर सेतु मिस यश दायकं।
दशशीश अनुज विशोक करणं नौमि रघुकुल नायकं।।६।।
घट कर्ण वारिद नाद अगणित काल सम निशिचर हने।
जय लोक रावण घाल सुर मख पाल माया नर बने।।७।।
जय जयति विबुधानंद दायक चाप सायक कर धरे।
कह सगुण गुण आदित्य निर्गुण 'नेति' श्रुति भव भय हरे।।८।।
Excellent. Thanks.
ReplyDeleteबहुत खूब!
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