कृत खण्डित वन्दित देव सदन। सद्ग्रन्थ दहे मख धर्म दलन।।
मह त्रास से आस गई जन की। महि राम की दासी भई खल की।।
तब राम प्रताप प्रकाश भरे। वृष प्राण के त्राण को देह धरे।।
प्रगटे तुलसी तमहार रवि। कलि कुंजर घालक सिंह कवि।।
हर भूधर जाह्नवी राम कथा। गरयुत तनया: जन आर्त्त यथा।।
तुलसी महिपाल दिलीप सुतं।नित नौमि महामुनि वृंद नुतं।।
चिन्मात्र अगात्र अपार अगम। कह नेति बखान पुराण निगम।।
त्रय लोक विमोहन ब्रह्म अजं। पहुंचा हर धाम हो राम परं।।
तव एव दया हरिदास गुरो। जय त्रास विखण्डन पाहि प्रभो ।।
मत संभव दारुण खेद हरं। बहु साधन भेद निषेध करं।।
बिरति भगति वर ज्ञान धृतं। वन्दे मुनि सात सोपान कृतं।।
वर कच्छप मन्दर हेतु यथा। तव धर्म हिते अवतार तथा।।
जय भारत संबल संत मणि। तव पार न पाये सहस्र फणि।।
मुख एक महा जड़ आदि कथम्। वर्णे महिमा तव हंस परम्।
भावपूरित रचना
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